साजिश (अ थ्रिलर स्टोरी) एपिसोड 1
गर्मियों की दोपहर की धूप मानो शरीर को जलाने लगती है और ऊपर से ट्रैफिक, अभी लाल बत्ती में खड़ा ही था कि किसी तेज रफ्तार से ब्रेक की आवाज आई और मेरी बाइक को बहुत तेज झटका लगा, बाइक न्यूट्रल पर थी जिस वजह से पहिये घूमते हुए लाल बत्ती क्रॉस करते हुए बीच चौराहे की तरफ फिसल गई मैंने फिसलती बाइक में से छलांग मार ली जबकि मेरी बाइक की ट्रक से टकराई। फिर दोबारा एक तेज ब्रेक लगने के घर्षण की आवाज के साथ दो तीन गाड़ियों के टकराने की आवाज आई। मैं धीरे से खड़ा हुआ और अपने घुटने से फट चुकी जीन्स में चिपकी धूल को झाड़ते हुए पीछे मुड़ा जिस गाड़ी ने मुझे ठोका था, ये सब बहुत जल्दी जल्दी में हुआ था। अभी मेरी बाइक को पीछे से ठोके हुए पंद्रह सेकंड बीते होंगे। जिस गाड़ी ने मुझे जोरदार टक्कर मारी थी वो काली कलर की बुलेरो ने गाड़ी दोबारा स्टार्ट की और मेरी तरफ तेजी से लाया। मैं खुद को बचाते हुए तीव्र गति से छलांग लगाते हुए सड़क के किनारे की तरफ कूद पड़ा। अब उस बुलेरो के पास कोई चांस नही था कि वो वापस आकर मुझपे फिर से वार करे इसलिए वो पूरी स्पीड में वहां से फरार हो गया। मैंने एक झलख उस आदमी की शक्ल देखी थी जहां तक मुझे याद है मैं उसे नही जानता था। शायद उससे कभी मिला ही नही था। फिर क्यो उसने मुझपर हमला किया, आखिर कौन था वो, क्या चाहता था? मुझसे क्या दुश्मनी थी उसकी?
मैंने सड़क पर गिरे अपने बाइक को उठाया और पैदल एक किनारे लाया, ट्रैफिक पुलिस और कुछ खाकी वर्दी वाले पुलिस कर्मी वहां पहुंचे, हर कोई जानता था की मेरी गलती नही थी, जिसकी गलती थी वो भाग चुका था।
10 दिन बाद
मैं मार्किट से लौट रहा था, मैं उस दिन वाली घटना लगभग भूल चुका था। उसे एक हादसा समझ लिया क्योकि उस बुलेरो को जब्त कर लिया गया था और जांच में पता चला था कि वो बुलेरो चोरी का था और उसे चुराने वाला चोर बुलेरो को छोड़कर लापता हो गया है। शायद चोर भागने की जल्दबाजी में ऐसा कांड कर गया हो, यही सोचकर मैं अब बेझिझक था। घर से थोड़ी ही दूर था इसलिए पैदल जा रहा था तभी एक चलती हुई बाइक मेरे सुनसान गली में मेरे सामने की तरफ से आई और उसमे बैठे शक्श ने बंदूक हाथ मे लेते हुए मेरी तरफ गोली चला दी, पहला निशाना चूक गया, मैं सावधान होते हुए झुकते हुए भागने लगा लेकिन अगली गोली से मैं नही बच पाया। अगली गोली मेरे कंधे पर जा लगी और मैं भागते हुए ही गली के टाइल्स पर लुढ़क गया।
जमीन पर पेट के बल गिरते हुए मुझे याद आया कि दस दिन पहले भी इसी बाइक वाले ने मुझे मारने की कोशिश की थी, आखिर क्यो? मुझे ये नही पता कि क्यों लेकिन आज मेरी उखड़ती हुई सांसों का जिम्मेदार भी वही अनजान शख्स था, जिसे मैं जानता भी नही। इसी सोच में डूबते हुए मेरी आँखें डूबने लगी और फिर चारो तरफ लोगो के भगदड़ और शोरगुल की आवाजें में कानों में गुजने लगी। और धरती हिलती डुलती महसूस होने लगी।
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"हहहह…….आज हुआ काम पूरा। आखिर उसे हमने मार ही दिया" शराब के गिलास को चियर्स करते हुए अमन ने अपने एक दोस्त विजय से कहा।
विजय थोड़ा गंभीर होते हुए अपने गिलास को मुंह मे लगाते हुए एक घूंट पीते हुए बोला- "इतना आसान तो नही था उसे मारना। फिर ये कारनामा किया किसने"
"रघु…. रघु ने मारा उसे, और रघु को तुम जानते ही हो, उसे बस फ़ोटो दिखाने की देर रहती है" अमन ने कहा।
विजय ने अमन की तरफ देखते हुए कहा- "अच्छा रघु मान गया था उसे मारने के लिए, जब मैंने उसे ये काम सौंपा तो उसने मना कर दिया था"
"मुझे भला कैसे मना करता है, उसकी कमजोर नस पकड़ी हुई है मैंने, कभी उससे कोई काम होगा तो उससे तुम मत बात करना, मुझे बताना उसे मैं कहूँगा।" अमन ने कहा।
विजय धीरे से मुस्कराया और अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांकने लगा।
अमन भी हंसने लगा।
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टीवी पर खबर छाई हुई थी। अचानक एक बाइक सवार ने बिना किसी झगड़े के चलाई गोली। गोविंद नगर के निवासी राहुल जोशी पर चलाई गई दिन दहाड़े गोली, राहुल की हालत बहुत गंभीर, आई सी यू में अंतिम सांस ले रहा है एक बेगुनाह । खबरों के मुताबिक कुछ दिन पहले भी उनको सड़क में जोरदार टक्कर से मारने की कि गयी थी कोशिश।
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राहुल
राहुल अभी पच्चीस साल के उम्र की तरफ कदम ही बढ़ा रहा था कि किसी ने उसके कदमो को वापस खींच लिया लेकिन राहुल की जिन्दगी के दुश्मन अमन और विजय थे ये तो तय था, लेकिन क्यों? क्या दुश्मनी थी राहुल से उनकी?
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सीनियर डॉक्टर ने पुलिस को एक रिपोर्ट सौंपी और कहा- "पेसेंट कॉमा में चले गया है, गोली कंधे से टकराकर हार्ट के मेन नस में चुभ गयी थी और उसका असर रीढ़ की हड्डी में भी था, गोली तो निकल गयी है लेकिन बॉडी को काफी नुकसान हुआ है, शायद पेसेंट बचे भी या……. उम्मीद बहुत कम है आपसे क्या छिपाना"
पुलिस से डॉक्टर साहब ने इतना कहा और अपने केबिन की तरफ चले गए। केबिन की तरफ जाते हुए डॉक्टर को देखकर पुलिस वाले ने उसे घूरते हुए देखा जब तक वो केबिन के अंदर नही चला गया उसके बाद एक लफ्ज़ बोला- "हरामी"
पुलिस वाले ने डॉक्टर के कैबिन की तरफ देखते देखते दबे पांव अपने कदम icu room की तरफ बढ़ाये और धीरे से कमरे में चला गया।
कमरे में जाकर उसने देखा कि कमरे में राहुल था ही नही, उसका बेड खाली था, खाली बेड देखते ही पुलिस के मुंह से एक चीख निकली- "डॉक्टर्……"
डॉक्टर को तेज आवाज के साथ चीखकर बुलाते हुए पुलिस वाले ने अपनी बंदूक हाथ मे निकाली और चारो तरफ घूमकर जल्दी जल्दी पर्दे के पीछे और अलमारी के पास ढूंढते हुए रूम से बाहर की तरफ भागता हुआ आया, बाहर की तरफ भागते समय उसकी टक्कर डॉक्टर से हुई और डॉक्टर साहब गिर पड़े। डॉक्टर साहब ने खुद को संभालते हुए पुलिस वाले कि तरफ देखा और हड़बड़ाते हुए कहा- "क्या हुआ, ऐसे चिल्लाए क्यो?"
पुलिस ने डॉक्टर के सिर पर बंदूक तान दी और कहा- "राहुल कहाँ है?"
"राहुल? वो मरीज? वो अंदर ही है, चलो, " कहते हुए डॉक्टर कमरे की तरफ गया और पुलिस वाला उसके पीछे पीछे चलते चलते बोला- "मैं देख चुका हूँ, वो अंदर नही है।"
कहानी जारी है
madhura
24-Aug-2023 05:27 AM
amazing
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Babita patel
13-Jul-2023 05:54 PM
great story writing
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Deepak Dangaich
21-Oct-2021 09:41 AM
Yes,great writting
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